Saturday 4 February 2017

उत्तम( विद्रोही) जैन का श्रीमति सोनिया गाँधी जी के नाम खुला पत्र

आदरणीया सोनिया जी,.
जय हिन्द - 
सादर नमस्कार 
सर्वप्रथम तो मैं आपके शीघ्र स्वास्थ्य-लाभ के लिए अपनी शुभकामना प्रेषित करता हूँ क्योंकि आपके स्वास्थ्य की स्थिति दीर्घावधि से चिंताजनक बनी हुई है और जो सूचनाएं मुझे सार्वजनिक संचार माध्यमों से प्राप्त हुई ! वे आपके हितैषियों तथा प्रशंसकों के लिए उत्साहवर्धक नहीं हैं ! ईश्वर की अनुकंपा से आप अतिशीघ्र पूर्ण स्वस्थ हों, मैं यही प्रार्थना करता हूँ । इस देश में आपके शुभचिंतक भी इने-गिने ही हैं और प्रशंसक भी । आपका जन्म इस देश में नहीं हुआ, दूसरे देश में हुआ, इसी बात को आधार बनाकर आपके सभी सदगुणो पर धूलि डाल दी जाती हैं और विशेष रूप से आपकी हिन्दी भाषा पर पूर्ण अधिकार नही होने से मज़ाक भी बनाया जाता है ! आपके विदेश-जन्मा होने के मुद्दे कारण जनता ऐसी सभी बातों पर निष्प्रमाण ही विश्वास कर लेगी । संभवतः उनकी यह धारणा ठीक भी है क्योंकि विगत सामान्य चुनाव में वे ऐसा करके राजनीतिक लाभ पाने में सफल रहे हैं । आपके व्यक्तित्व एवं चरित्र की निर्मलता एवं उदात्तता को देखने-परखने और स्वीकार करने वाले आपके ऐसे सच्चे प्रशंसक आज भी भारत में हैं । मैं उन्हीं में से एक हूँ । मे एक उभरता हुआ एक पत्रकार व लेखक हु साथ मे मैं एक अराजनीतिक व्यक्ति हूँ क्यू की वर्तमा्न राजनीति से तो मुझे घिन आती है जो सिर्फ व सिर्फ स्वार्थ परस्त राजनीति है ! लेकिन जब से मे सयाना हुआ राजनीति को समझने की कोशिस की अर्थात दो दशकों से भारतीय राजनीति के उतार-चढ़ावों पर दृष्टि रख रहा हूँ । मैंने आपके व्यक्तित्व में रुचि लेना तब आरंभ किया था जब आपके पति स्वर्गीय राजीव गाँधी भारत के प्रधानमंत्री पद पर आसीन थे ! उस समय आपके पति के मोत जिन्होने देश के लिए अपनी जान न्योछावर कर दी ओर मीडिया , कथित राजनेता देश के ठेकेदार आपके विदेशी मुद्दे को बार बार उठा रहे है जबकि उस समय आपके साथ साहनुभूति की जरूरत थी मगर आप अपने लिए कही जा रही थी उन बेतुकी बातों का खंडन नहीं करती थीं (वस्तुतः आप सार्वजनिक जीवन से पूर्ण दूरी बनाए रखती थीं), इसीलिए आपके विषय में कई किवदंतियों ने जन्म लिया और मुझ जैसे बहुत से लोग वर्षों तक भ्रमित होते रहे । लेकिन राजीव जी के असामयिक निधन के उपरांत मैंने आपके वास्तविक व्यक्तित्व को पहचानना आरंभ किया और अंततः मैं आपके भीतर छुपी उस संवेदनशील मानवी को देख पाने में सफल हुआ जिससे आज भी इने-गिने लोग ही परिचित हैं । मैं स्वयं एक संवेदनशील मनुष्य हूँ और एक संवेदनशील व्यक्ति ही किसी दूसरे व्यक्ति की संवेदनशीलता को देख-सुन-पहचान सकता है, उसे सराह सकता है ।
सोनिया जी, आप जन्म से चाहे विदेशी हैं किन्तु पहले एक प्रेयसी,फिर पत्नी एवं पुत्रवधू और फिर एक माँ के रूप में आपका जीवन एक आदर्श भारतीय स्त्री जैसा ही रहा है जिसने एक भारतीय पुरुष को अपने जीवन साथी के रूप में स्वीकार किया तथा उसके जीवनकाल में एक आदर्श सहधर्मिणी के रूप में सदा उसके साथ खड़ी रही । अपनी सास इन्दिरा जी के जीवनकाल में आप एक आदर्श पुत्रवधू की भांति सदा उनकी इच्छा एवं दिशानिर्देशों के अनुरूप ही रहीं । आप अपने पति के राजनीति में जाने के पक्ष में नहीं थीं किन्तु जब कालचक्र ने आपके पति को राजनीति में धकेल ही दिया तो आपने अपने पति को अपना सम्पूर्ण नैतिक समर्थन दिया । आप कभी अनावश्यक रूप से सुर्खियों में नहीं आईं तथा अपने पति के प्रधानमंत्रित्व काल में आपने अपने व्यक्तित्व की निजता तथा गरिमा को अक्षुण्ण बनाने रखा । जब आपके पति का असामयिक निधन हो गया तो इस पहाड़ जैसे दुख को अपने हृदय की परिधि में समेटे हुए आपने अपने पितृहीन बालकों का पालन-पोषण स्वयं को भारतीय राजनीति से पूरी तरह से दूर रखते हुए किया । और यह कोई छोटी उपलब्धि नहीं । यह आपके आत्मबल, दृढ़ इच्छाशक्ति एवं व्यक्तित्व की गहनता का जीताजागता प्रमाण है । जिसे मे व मेरे विचारो के समर्थक सदा नमन करते है !.
आप सादगी में विश्वास रखती हैं एवं आडंबरों से सदैव दूर रहती हैं । इसका प्रमाण मुझे तब मिला था जब आपने अपनी पुत्री का विवाह अत्यंत साधारण ढंग से बिना किसी तड़क-भड़क एवं अपव्यय के किया । १८ फ़रवरी,१९९७ को यह विवाह सम्पन्न हुआ था । पूर्व प्रधानमंत्री की पुत्री का विवाह तो वैभवपूर्वक तथा भरपूर प्रचार के साथ भी किया जा सकता था किन्तु मुझे बहुत आश्चर्य हुआ इस विवाह को गिने-चुने अतिथियों की उपस्थिति में अत्यंत सादा तरीके से सम्पन्न कराया गया था तथा पत्रकारों को भी इस समारोह से दूर रखा गया था ।.
आप कितनी संवेदनशील हैं विदेश मे जन्म लेने के बाद भी आप भारतीय संस्कृति व एक भारतीय नारी जेसे दयाभाव व रागद्वेष युक्त व बलिदान की प्रतिमूर्ति है इसका प्रमाण यह है कि आपने अपने पति की हत्या का षड्यंत्र रचने वालों को मृत्युदंड न दिए जाने के लिए स्वयं भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति श्री के॰आर॰ नारायणन को पत्र लिखकर षड्यंत्रकारियों के लिए और विशेषतः नलिनी नाम की षड्यंत्रकारिणी के लिए क्षमादान मांगा था । अपने पत्र में आपने इस बात का संदर्भ दिया था कि नलिनी एक छोटी बच्ची की माता थी और स्वयं अपने पति को खोने की पीड़ा से गुज़रने तथा अपने बच्चों को उनके पिता को खोने की पीड़ा से गुज़रता देखने के कारण आप जानती थीं कि अपने माता या पिता को खो देने पर एक बालक पर क्या बीतती है । मुझे यह देखकर बहुत दुख हुआ था कि आपके इस अत्यंत मानवीय कार्य की भी राजनीतिक व्याख्या ही की गई थी । मुझ जैसे विद्रोही या अराजनीतिक इने-गिने लोग ही आपके इस कार्य के पीछे आपके हृदय में बसी संवेदनशीलता को देख सके, भाँप सके, अनुभूत कर सके । आपके विरोधियों से ही नहीं वरन समस्त भारतवासियों से मेरा प्रश्न है कि आप पर केवल आपके विदेशी मूल के कारण नाना प्रकार से आक्रमण किया जाए जिसमें शालीनता की सारी सीमाएं पार कर दी जाएं, यह किस दृष्टिकोण से उचित है ? काश लोग राजनीति से परे जाकर आपको केवल एक मानवी के रूप में देखें और निर्णय करें कि आपके सदगुणों को अनदेखा करना क्या आपके प्रति अन्यायपूर्ण नहीं है ! क्या आपके विरोधी भी अपने परिवारों में ऐसे ही मानवीय गुणों से युक्त तथा ऐसे ही दृढ़ संकल्प एवं साहस से परिपूर्ण परिपक्व व्यक्तित्व वाली पुत्रवधुएं नहीं चाहेंगे ? इसके विपरीत आपके प्रमुख राजनीतिक विरोधी तथा भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री का कोई कट्टर समर्थक भी अपनी पुत्री के लिए उनके जैसा वर नहीं चाहेगा क्योंकि ऐसा जामाता किस काम का जो अपनी ब्याहता पत्नी को उसका न्यायोचित अधिकार एवं सम्मान न दे ?.
आपने दल एवं सरकार के प्रमुख का पद १९९१ में ही ठुकरा दिया था जो आपके इस प्रकार की लालसाओं से निर्लिप्त होने का प्रमाण था । आगामी कुछ वर्षों में भी आपने स्वयं को अनावश्यक चर्चाओं एवं विवादों से पूरी तरह दूर रखा तथा राजनीति में किसी भी प्रकार की रुचि तब तक नहीं ली जब तक कि आपको नहीं लगा कि आपके परिवार की राजनीतिकविरासत पूरी तरह से नष्ट होने जा रही थी और उसे बचाने का प्रयास करना आपका कर्तव्य था । यदि आपने उस समय दल की बागडोर को न संभाल लिया होता तो सीताराम केसरी के तत्वावधान में इस देश के सबसे पुराने राजनीतिक दल का अंतिम संस्कार १९९८ में ही हो गया होता । .
वैसे तो आपका भारतीय राजनीति में पदार्पण करना ही आपका सबसे बड़ा त्याग था । उस पर आपने शासन-प्रमुख का पद दो बार ठुकराया । यह आपके त्यागमय स्वभाव तथा चारित्रिक दृढ़ता का परिचायक है । भारतीय संविधान के प्रावधानों के अंतर्गत आपको प्रधानमंत्री के पद पर आसीन होने का पूर्ण अधिकार था जिससे आपको रोका नहीं जा सकता था । लेकिन आपने स्वेच्छा से इस पद के प्रस्ताव को अस्वीकार किया एवं साफ-सुथरी छवि वाले डॉ॰ मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनने का अवसर दिया । फिर भी आप पर आरोप लगाया जाता रहा कि आप एक कठपुतली प्रधानमंत्री की आड़ में स्वयं सत्ता तथा सरकार का संचालन मानो रिमोट कंट्रोल से करती रहीं लेकिन इस बात का कोई ठोस प्रमाण उपलब्ध नहीं है यह एक सुनी-सुनाई बात है जिसे बिना किसी आधार के बार-बार दोहराया जाता है । किसी दार्शनिक ने कहा है ‘बार-बार दोहराए गए झूठ को लोग सच मानने लगते हैं’, आपके लिए विभिन्न माध्यमों से बारंबार बोले गए इस झूठ को अब सच का रंग दे दिया गया है । जबकि वस्तुस्थिति यह है कि आपने डॉ॰ मनमोहन सिंह को अपने पद के संचालन एवं कर्तव्य-निर्वहन में पूर्ण स्वायत्तता प्रदान की थी एवं अपनी ओर से तभी हस्तक्षेप किया था जब आपको जनहित में आवश्यक लगा । भूमि-अधिग्रहण कानून में आपने जनहित में हस्तक्षेप करके यथोचित संशोधन करवाए थे ताकि किसानों एवं आम लोगों की भूमि को बलपूर्वक हड़पा न जा सके । महिला आरक्षण विधेयक चाहे अंतिम रूप में पारित न हो पाया हो लेकिन उसके राज्य सभा की बाधा पार कर लेने में सफल हो जाना भी आपके अनवरत एवं निष्ठावान प्रयासों से ही संभव हो सका था । आप नारी-सशक्तिकरण में आस्था रखती हैं एवं महिलाओं को विधानमंडलों में आरक्षण दिलवाने की आपकी हार्दिक इच्छा थी जो नारी-विरोधी पुरुष-प्रधान राजव्यवस्था ने पूर्ण नहीं होने दी । आपके विश्वासी स्वभाव को जैसे १९९९ में मुलायमसिंह यादव ने छला था, वैसे ही एक दशक से अधिक समय के उपरांत आपके अपने ही दल के सदस्यों ने भी इस संदर्भ में उसके साथ छल ही किया ।.
सोनिया जी, इतिहास विजेताओं द्वारा लिखा जाता है और इसीलिए वह न तो पूर्णरूपेण सत्य होता है और न ही वह पराजितों के साथ न्याय करता है जब इतिहास आपके निर्मल-हृदय पति के साथ न्याय नहीं कर सका और बोफ़ोर्स सौदे की दलाली का मिथ्यारोप उन पर उनके देहावसान के दशकों पश्चात् आज तक लगाया जाता रहा है तो वह आपके साथ न्याय कैसे करेगा ? कौन स्वीकारेगा और मान्यता देगा भारत देश और भारतीय राजनीति में दिए गए आपके सकारात्मक योगदान को ? आपने तो अपने दल के सत्ता में रहते हुए भी किसी राजनीतिक विरोधी पर कोई प्रतिशोधात्मक कार्रवाई नहीं की लेकिन आपके राजनीतिक विरोधी ऐसे उदारमना एवं स्वच्छ मन के नहीं हैं । आपने चुनाव प्रचार एवं राजनीतिक अभियानों में भाषा तथा भंगिमाओं की गरिमा सदा बनाए रखी और व्यक्तिगत आक्षेपों से परहेज़ रखा लेकिन आपके राजनीतिक विरोधी शालीनता की सभी सीमाएं तोड़ते हुए सदा आप पर व्यक्तिगत आक्रमण करते रहे । जब भी इटली से संबंधित कोई तथ्य सामने आता है, आप पर उंगलियाँ उठाई जाने लगती हैं मानो इटली में जन्म लेना कोई अपराध हो अथवा इटली कोई बुरा स्थान या देश हो । भारतीय संस्कृति की दुहाई देने वाले आपके विरोधी इस सनातन भारतीय सामाजिक परंपरा को अपनी राजनीतिक सुविधा के लिए विस्मृत कर देते हैं कि विवाह के उपरांत वधू अपने ससुराल की सदस्या होती है, अपने पितृगृह की नहीं । इस दृष्टि से भी एवं विगत आधी सदी में प्रदर्शित अपने सम्पूर्ण आचरण से भी आप भारतीय ही हैं ।यह विपणन अथवा मार्केटिंग का युग है सोनिया जी तथा आपके वर्तमान प्रमुख राजनीतिक विरोधी मार्केटिंग की कला में निष्णात हैं । इसीलिए वे जनमानस में स्वयं को दुग्ध-धवल सिद्ध करने में एवं आपके दल पर कालिमा के आरोपण में सफल रहे हैं । काठ की हांडी चाहे बार-बार आँच पर न चढ़ सके, एक बार तो चढ़ ही जाती है । मैंने ऊपर ही कहा है कि बार-बार बोला गया झूठ सुनने वालों द्वारा सच मान लिया जाता है । इसीलिए आपके लिए निराधार झूठ इतनी बारंबारता तथा इतनी प्रचंडता के साथ बोले जाते हैं ताकि वे जनता की मानसिकता में गहरे पैठ जाएं और आमजन उन्हें शाश्वत सत्य समझ बैठें । आप कर्मयोगिनी हैं, विपणन-विशेषज्ञा नहीं । इसीलिए संभवतः आप अपने राजनीतिक विरोधियों की कुटिल चालों का उचित प्रत्युत्तर नहीं दे सकतीं । अब आपकी बढ़ती आयु एवं रोगावस्था के कारण भी आप राजनीतिक गतिविधियों हेतु पर्याप्त ऊर्जावान नहीं रहीं । अब आपको शारीरिक तथा मानसिक आराम की आवश्यकता है । मेरा आपको यही परामर्श है कि अब आप दल एवं राजनीति से संबंधित सभी दायित्वों से स्वयं को मुक्त कर लें ।.
सोनिया जी, एक माता के रूप में आपकी स्वाभाविक अभिलाषा होगी कि आपका पुत्र भारत के प्रधानमंत्री के पद पर शोभायमान हो लेकिन आपकी जगह यदि कोई भारतीय मूल की स्त्री भी होती तो एक माता के रूप में उसकी अभिलाषा तो यही होती। माता तो सदा यही चाहती है कि उसकी संतान सफलता की पराकाष्ठा पर पहुँचे । लेकिन सोनिया जी, प्रत्येक कार्यक्षेत्र प्रत्येक व्यक्ति के लिए नहीं होता । आपने यदि अपने पुत्र को २००९ में ही भारत का प्रधानमंत्री बनने के लिए आगे बढ़ा दिया होता तो आपकी अभिलाषा पूर्ण हो गई होती लेकिन आपने राष्ट्रहित में डॉ॰ मनमोहन सिंह को ही द्वितीय अवसर दे दिया और अब आपका पुत्र इस पद तक पहुँच सकेगा, इसकी संभावना अत्यंत क्षीण है । वह अभी भी राजनीति में अपरिपक्व है तथा मुझे तो यही लगता है कि वह भारतीय राजनीति के लिए नहीं बना है । राजनीति के लिए ही उसने विवाह नहीं किया जो कि मेरी दृष्टि में एक बड़ा व्यक्तिगत त्याग है । लेकिन इस त्याग की तो आवश्यकता ही नहीं सोनिया जी । क्या आपकी कामना नहीं होती कि आपके घर में पुत्रवधू के चरण पड़ें, पायल की छमछम एवं नवजात की किलकारियाँ गूँजें, आपको दादी बनने का गौरव प्राप्त हो ? होती है न ? तो फिर अपने पुत्र को विवाह करने के लिए प्रेरित कीजिए । पुरुष का विवाह अधिक आयु में भी संभव है । कई भारतीय राजनेताओं ने भी चालीस वर्ष की आयु पार करने के उपरांत विवाह किया है । वैवाहिक जीवन में प्रवेश करके उसके व्यक्तित्व की परिपक्वता भी बढ़ेगी । बाकी अपने राजनीतिक दल को उसके भाग्य पर छोड़ दीजिए । नियति से कोई नहीं बच सकता सोनिया जी । यदि इस दल की नियति मिट जाना ही है तो यह मिटकर ही रहेगा । आप इसकी भाग्य-नियंता नहीं बन सकती हैं । आयु के इस पड़ाव पर अब आप इसका प्रयास भी न कीजिए । अब आप केवल अपने स्वास्थ्य तथा मानसिक शांति का ध्यान रखिए ।
.शुभकामनाओं सहित ......आपका अपना
उत्तम जैन ( विद्रोही )
प्रधान संपादक - विद्रोही आवाज 

No comments:

Post a Comment

जीवन के मकान में रहे अच्छाइयों का प्रवास : आचार्य महाश्रमण

कडूर और बिरूर में अहिंसा यात्रा का भव्य स्वागत  कडूर, कर्नाटक-  सद्भावना नैतिकता और नशामुक्ति इन तीनों आयामों से जन-जीवन का कल्याण कर...