Monday 23 January 2017

मानसिक तनाव: इस युग की महाव्याधि मुख्य भूमिका फेसबूक व व्हट्स अप

तनाव आज जीवन का अभिन्न अंग बन गया है। बच्चा, बूढ़ा, अमीर-गरीब, बुद्धिजीवी-श्रमशील, पुरुष-स्त्री सभी इससे ग्रसित हैं। अतः आज के युग को यदि तनाव युग कहें तो कोई अतिशयोक्ति न होगी।आज ऐसे व्यक्ति की कल्पना असम्भव है जो मानसिक तनाव को अनुभव न करता हो, तनाव एक महाव्याधि के रूप में मानव जाति को आतंकित किये है।आज मुख्यतया मेने देखा है समझा है ज़्यादातर तनाव शोशल मीडिया से उत्तपन्न हुआ है ! पारिवारिक कलह हो या मित्रो से कलह मे आज फेसबूक व व्हट्स अप की हिस्सेदारी 50 प्रतिशत से ज्यादा है खेर मे इसे विस्तृत मे न बताकर मुख्य मुद्दे तनाव की ओर अपने विचार लिखना चाहूँगा !
तनाव मनुष्य के लिए हानिकारक ही हो ऐसी बात भी नहीं है। यह मनुष्य के विकास एवं प्रगति में कारक तत्त्व रहा है। आपातकालीन परिस्थितियों का सामना करने में मन एवं शरीर को तनाव ही तैयार करता है। पूर्व ऐतिहासिक काल का आदिमानव इस तनाव द्वारा ही जंगली पशुओं के हमलों से बचने में समर्थ रहता था। तनाव की स्थिति में शरीर की एड्रीनल ग्रंथि से एड्रीनेलिन नामक हारमोन स्रावित होता है, जो शरीर की प्रतिरोधी क्षमता बढ़ाता है व शरीर को बाह्य दबाव सहन करने में सक्षम बनाता है।
तनावपूर्ण स्थिति से निपटने की व्यवस्था प्रकृति ने मनुष्य शरीर में दी है। लेकिन बार-बार लम्बे समय तक तनावपूर्ण स्थिति के बने रहने के कारण यह व्यवस्था चरमरा जाती है। क्योंकि इस अवस्था में हारमोन का स्राव अनावश्यक एवं अत्यधिक मात्रा में होता है जो शरीर के विभिन्न अंग- अवयवों पर दुष्प्रभाव डालता है। माँसपेशियों में खिचाव, पेट दर्द, कँधे व पैर में दर्द, दस्त, साँस लेने में तकलीफ, पेशाब व हृदयगति की अनियमितता, थकान, सरदर्द आदि शारीरिक लक्षण दिखाई पड़ते हैं। अधिक गम्भीर होने पर इसके दुष्परिणाम आँत के फोड़े (पेपरिक अल्सर), हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, गठिया, अनिद्रा, कोलाइटिस, कब्ज, स्नायु दुर्बलता, एलर्जी, चिड़चिड़ापन, एकाग्रता में कमी जैसे रोगों के रूप में प्रकट होते हैं।
अत्यधिक तनाव शरीर व मन को तोड़-मरोड़ कर रख देता है व शीघ्र ही बुढ़ापे की ओर ले जाता है। यह असामयिक मृत्यु का कारण भी बन सकता है। अब तो मधुमेह, कैंसर, एड्स जैसे गम्भीर रोगों का कारण भी तनाव माना जा रहा है।
तनाव व्यक्ति के स्वास्थ्य के साथ उसकी कार्यक्षमता की तबाही कर देता है।तनाव रहित स्थिति में एक व्यक्ति बिना थके 18 घण्टे काम कर सकता है। लेकिन यदि उसे तनावग्रसित स्थिति में काम करना पड़े तो वह 8 घण्टे में ही थक जायेगा।बढ़ते तनाव के कारण मानसिक रोगों से पीड़ित व्यक्तियों की संख्या में बाढ़ सी आ गई है। प्रगतिशील युग की देन तनाव रूपी महाव्याधि पूर्व में कभी इतने व्यापक एवं गम्भीर रूप में नहीं रही।
उन्नीसवीं शताब्दी प्रगतिकाल की रही व बीसवीं शताब्दी को चिंताओं का काल (तनाव युग) कहा जा सकता है।”भोगवादी मूल्यों पर आधारित आज की भौतिकवादी सभ्यता बढ़ते तनाव का प्रमुख कारण है। इसी के कारण असंयमित आचरण जीवन का अविच्छिन्न अंग बन गया है। प्रगति की अंधी दौड़ में मनुष्य मानवीय मर्यादा, नैतिक एवं आध्यात्मिक मूल्यों को तिलाञ्जलि दे चुका है। एक-दूसरे को नीचा दिखाने की प्रतिस्पर्धा, विलासी जीवन, अमर्यादित आचरण , उद्दण्ड व्यवहार एवं विकृत चिंतन दिनचर्या के अंग बन गये हैं। परिणामतः बढ़ती असुरक्षा, हिंसा, ईर्ष्या-द्वेष, भय, चिंता,निराशा, खिन्नता जैसे मानसिक विकार मनुष्य के जीवन में कुहराम मचाए हुए हैं।
तनाव के घातक प्रभावों के कारण इसका उपचार आवश्यक है। इसका पूर्ण उपचार तो शक्य नहीं लेकिन जीवन शैली, कार्यप्रणाली एवं चिंतन पद्धति में आवश्यक सुधार एवं परिवर्तन कर इसे हल्का अवश्य किया जा सकता है। वैसे तनाव से पूर्ण शान्ति सम्भव भी नहीं है और न ही आवश्यक भी है। यदि तनाव अपनी कार्यशैली में दोष के कारण है तो उसमें आवश्यक हेर-फेर कर सुधारा जा सकता है। यदि कार्य की अधिकता तनाव का कारण हो तो कार्यों को प्राथमिकता के आधार पर करके इसे निपटाया जा सकता है। यदि कार्य करते-करते मानसिक थकान लगे तो काम को बदलकर शारीरिक श्रम या अन्य मनोरंजन प्रधान कार्य द्वारा इसे बदला जा सकता है। इसमें आत्मीय बन्धुओं से गप-शप या बाहर टहलने आदि का क्रम भी बनाया जा सकता है। सप्ताह अंत में एक दिन किसी निर्जन स्थान पर प्रकृति की गोद में घूम- फिर कर मन को हल्का व तरोताजा कर सकते हैं।
तनाव का कारण दूसरों के साथ अपनी व्यवहार जन्य त्रुटियाँ भी हो सकती हैं। इस संदर्भ में दूसरों का यथोचित सम्मान करें। दूसरों के कार्य में अनावश्यक हस्तक्षेप न करें। कम बोलें व अधिक सुनें। अपने काम को ईमानदारी व जिम्मेदारी से करें। जिद्दीपन व दुराग्रह को त्याग दें। सबसे सामञ्जस्य बिठाकर सौहार्द्रपूर्ण वातावरण बनाये रखें। फेसबूक व व्हट्स अप से समय निकालकर अपने परिवार को भी समय दे
लेखक - उत्तम जैन ( विद्रोही )
प्रधान संपादक - विद्रोही आवाज़ 

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